भारतीय न्याय संहिता (BNS) 2023 कि धारा:- 228
(मिथ्या साक्ष्य गढ़ना)
जो कोई इस आशय से किसी परिस्थिति को अस्तित्व में लाता है, या किसी पुस्तक या अभिलेख या इलैक्ट्रॉनिक अभिलेख में कोई मिथ्या प्रविष्टि करता है या मिथ्या कथन अन्तर्विष्ट रखने वाला कोई दस्तावेज या इलैक्ट्रॉनिक अभिलेख रचता है कि ऐसी परिस्थिति, मिथ्या प्रविष्टि या मिथ्या कथन न्यायिक कार्यवाही में, या ऐसी किसी कार्यवाही में जो लोक सेवक के समक्ष उसके उस नाते या मध्यस्थ के समक्ष विधि द्वारा की जाती है, साक्ष्य में दर्शित हो और कि इस प्रकार साक्ष्य में दर्शित होने पर ऐसी परिस्थिति, मिथ्या प्रविष्टि या मिथ्या कथन के कारण कोई व्यक्ति जिसे ऐसी कार्यवाही में साक्ष्य के आधार पर राय कायम करनी है ऐसी कार्यवाही के परिणाम के लिए तात्विक किसी बात के सम्बन्ध में गलत राय बनाए, वह "मिथ्या साक्ष्य गढ़ता है", यह कहा जाता है।
उदाहरण:- (क) राजेश एक बक्स में, जो राजेंद्र का है, इस आशय से आभूषण रखता है कि वे उस बक्स में पाए जाएं, और इस परिस्थिति से राजेंद्र चोरी के लिए दोषसिद्ध ठहराया जाए। राजेश ने मिथ्या साक्ष्य गढ़ा है।
(ख) राजेंद्र अपनी दुकान की बही में एक मिथ्या प्रविष्टि इस प्रयोजन से करता है कि वह न्यायालय में सम्पोषक साक्ष्य के रूप में काम में लाई जाए। राजेंद्र ने मिथ्या साक्ष्य गढ़ा है।
(ग) मोहन को एक आपराधिक षड्यन्त्र के लिए दोषसिद्ध ठहराया जाने के आशय से सोहन एक पत्र की अनुकृति करके षड्यन्त्र के सह-अपराधी को सम्बोधित किया है और उस पत्र को ऐसे स्थान पर रख देता है. जिसके सम्बन्ध में वह यह जानता है कि पुलिस अधिकारी सम्भाव्यतः उस स्थान की तलाशी लेंगे। सोहन ने मिथ्या साक्ष्य गढ़ा है।
(IPC) की धारा 192 को (BNS) की धारा 228 में बदल दिया गया है। - अगर आप चाहे तो लोगो पर क्लिक करके देख सकते है |
अघ्याय 2 की सारी धाराएं विचारण के पहले की (इनके प्रारूप ऊपर हेड में दिए गए है)
अस्वीकरण: सलाह सहित यह प्रारूप केवल सामान्य जानकारी प्रदान करता है. यह किसी भी तरह से योग्य अधिवक्ता राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने अधिवक्ता से परामर्श करें. भारतीय न्याय संहिता (BNS) 2023 इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है